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House Renting Guide: Important Things to Check Before Finalizing a Rental Home

होम लोन लिया है? ये 6 कड़वी सच्चाइयाँ आपका बैंक कभी नहीं बताएगा — लेकिन बतानी चाहिए!

आपने अपने सपनों का घर चुन लिया। ढेर सारे दस्तावेज़, बैंक विज़िट्स और वेरिफिकेशन के बाद आखिरकार आपका होम लोन मंज़ूर हो गया। आप सोचते हैं — अब तो सब ठीक है।

लेकिन यहीं से असली कहानी शुरू होती है।

टैक्सबडी डॉट कॉम (TaxBuddy.com) के संस्थापक सुजित बंगार कहते हैं कि ज्यादातर लोग लोन मंज़ूर होने के बाद ही असली मुश्किलें समझते हैं — छुपे हुए चार्ज, फालतू बीमा पॉलिसी, और अधूरी जानकारी

अपने एक LinkedIn पोस्ट में उन्होंने ऐसे 6 सच्चे लेकिन अनकहे होम लोन हैक्स बताए हैं, जो आपके बैंक का रिलेशनशिप मैनेजर (RM) कभी खुलकर नहीं बताएगा।

आइए इन्हें सरल भाषा में समझते हैं।


1️⃣ सभी खर्चों का पूरा ब्रेकअप माँगिए — ये आपका हक है

बैंक अक्सर ब्याज दरें तो साफ़ बताते हैं, लेकिन बाकी चार्जेस छिपाकर रखते हैं

लोन मंज़ूर होने के बाद अचानक आपके मेल में ऐसे खर्चे दिखने लगते हैं:

  • प्रोसेसिंग फीस

  • लीगल वेरिफिकेशन चार्ज

  • टेक्निकल / वैल्यूएशन फीस

  • एडमिनिस्ट्रेशन या डॉक्युमेंटेशन चार्ज

ये सभी लोन स्वीकृति के बाद बताए जाते हैं — जब आपके पास विकल्प बहुत कम बचता है।

👉 RBI के नियम के अनुसार, हर बैंक को आपको एक डिटेल्ड कॉस्ट शीट (पूर्ण खर्च विवरण) देना अनिवार्य है।

👉 क्यों ज़रूरी है:
हर छोटा “छिपा हुआ खर्च” जैसे ₹5,000–₹10,000 मिलकर ₹30,000–₹50,000 तक बन सकता है।

👉 क्या करें:
लोन साइन करने से पहले बैंक से लिखित में सभी चार्जेस का ब्रेकअप माँगिए — “आगे बताएंगे” जैसी बातों पर भरोसा मत करें।


2️⃣ “टैक्स बचाने वाला बीमा ज़रूरी है” — ये झूठ है!

लोन डिस्बर्समेंट से ठीक पहले आपका RM कॉल करता है —

“सर, लोन के साथ हमारी बीमा पॉलिसी लेना अनिवार्य है।”

यह बैंक का सबसे आम दबाव वाला तरीका है।

बैंक अक्सर आपको एक महंगा, लंबी अवधि वाला जीवन बीमा (Life Insurance) बेचते हैं — और कहते हैं कि यह “लोन प्रोटेक्शन” के लिए ज़रूरी है।

सच्चाई:

कोई भी बीमा पॉलिसी अनिवार्य नहीं है
आप चाहें तो किसी भी कंपनी से बीमा ले सकते हैं — या बिल्कुल ना लें, अगर पहले से बीमा है।

टैक्स बचत का भ्रम:

RMs इसे “टैक्स बचाने का बढ़िया तरीका” बताकर बेचते हैं। लेकिन ज़्यादातर लोग पहले ही धारा 80C के तहत ₹1.5 लाख की सीमा होम लोन के मूलधन (Principal) से ही पूरी कर लेते हैं।

ऊपर से, नए टैक्स सिस्टम (New Tax Regime) में तो यह छूट वैसे भी लागू नहीं होती

👉 स्मार्ट सलाह:
एक साथ 2–3 बैंकों में आवेदन करें। इससे कोई भी RM आपको एक ही बैंक के दबाव में नहीं ला सकेगा।


3️⃣ जॉइंट ओनरशिप से टैक्स बेनिफिट दोगुना करें

अगर आप अपने जीवनसाथी या परिवार के किसी सदस्य के साथ मिलकर घर खरीद रहे हैं, तो प्रॉपर्टी और लोन दोनों को जॉइंट नेम में रखिए।

इससे आप दोनों को अलग-अलग टैक्स छूट मिलेगी:

  • धारा 80C के तहत ₹1.5 लाख तक (मूलधन पर)

  • धारा 24 के तहत ₹2 लाख तक (ब्याज पर)

यानी कुल ₹3.5 लाख प्रति व्यक्ति — दो लोगों के लिए ₹7 लाख तक की वैध छूट!

👉 उदाहरण:
अगर पति-पत्नी मिलकर ₹60 लाख का घर लेते हैं और हर साल ₹5 लाख ब्याज और ₹3 लाख मूलधन चुकाते हैं, तो दोनों अलग-अलग टैक्स में छूट ले सकते हैं।

याद रखें:

दोनों के नाम

  • प्रॉपर्टी के डॉक्युमेंट्स में, और

  • लोन एग्रीमेंट में
    होने चाहिए। तभी डबल टैक्स बेनिफिट मिलेगा।


4️⃣ महिला के नाम पर रजिस्ट्री कराकर स्टांप ड्यूटी बचाइए

भारत के कई राज्यों में — जैसे दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, यूपी — महिलाओं के नाम पर प्रॉपर्टी रजिस्ट्री करने पर स्टांप ड्यूटी कम लगती है।

आमतौर पर 1% से 2% का अंतर होता है।

👉 उदाहरण:
अगर प्रॉपर्टी की कीमत ₹1 करोड़ है —

  • पुरुष के नाम पर स्टांप ड्यूटी: 7%

  • महिला के नाम पर: 5%

यानी सीधे ₹2 लाख की बचत!

ध्यान देने योग्य बात:

अगर घर पूरी तरह महिला के नाम पर है, तो भविष्य में उत्तराधिकार (succession) के अधिकार उसी के होंगे। इसलिए परिवार में पहले से इस पर स्पष्ट सहमति बनाएं।

सबसे बेहतर तरीका है कि घर संयुक्त नाम (joint name) पर हो —
इससे टैक्स छूट भी मिलेगी और स्टांप ड्यूटी में बचत भी।


5️⃣ प्रोजेक्ट को हमेशा RERA पोर्टल पर जाँचिए

अगर आप कोई नया घर या फ्लैट खरीद रहे हैं — खासकर अंडर कंस्ट्रक्शन — तो पहली चीज़ जो करनी चाहिए, वह है अपने राज्य के RERA पोर्टल पर उसकी जाँच

RERA क्यों ज़रूरी है:

यह आपको बताएगा:

  • बिल्डर कौन है और उसका ट्रैक रिकॉर्ड क्या है

  • प्रोजेक्ट के अप्रूवल और परमिशन की स्थिति

  • कोई मुकदमा या शिकायत लंबित तो नहीं

  • बिल्डर ने समय पर प्रोजेक्ट पूरे किए हैं या नहीं

👉 कैसे जाँचें:

  1. अपने राज्य के RERA पोर्टल (जैसे महाराष्ट्र के लिए maharera.mahaonline.gov.in) पर जाएँ।

  2. प्रोजेक्ट या बिल्डर का नाम डालें।

  3. सारी जानकारी ध्यान से पढ़ें।

अगर प्रोजेक्ट RERA में रजिस्टर्ड नहीं है, तो यह बहुत बड़ा खतरे का संकेत है।

सुजित बंगार का कहना है:

“RERA जांच छोड़ देना सबसे महंगी गलती हो सकती है।”


6️⃣ Occupancy Certificate (OC) के बिना घर की चाबी मत लीजिए

बिल्डर फोन करता है — “सर, आपका फ्लैट तैयार है! आ जाइए, चाबी ले जाइए।”
आपका दिल खुशी से भर जाता है। लेकिन रुकिए — एक सवाल ज़रूर पूछिए:

“क्या बिल्डिंग को Occupancy Certificate (OC) मिल गया है?”

OC क्या होता है?

OC एक आधिकारिक दस्तावेज़ होता है जो नगर निगम या स्थानीय प्राधिकरण जारी करता है। यह प्रमाण देता है कि बिल्डिंग ने सभी सुरक्षा और निर्माण नियमों का पालन किया है और उसमें रहना सुरक्षित है।

OC के बिना जोखिम:

  • घर कानूनी रूप से अवैध कब्ज़ा माना जा सकता है।

  • बिजली, पानी जैसी सुविधाएँ दिलाने में दिक्कत आती है।

  • बाद में घर बेचने या किराए पर देने में मुश्किल होती है।

👉 अगर बिल्डर OC देने में देर करे:

  • कब्ज़ा मत लीजिए

  • RERA पोर्टल पर शिकायत दर्ज करिए।

  • सभी ईमेल और पत्राचार का रिकॉर्ड रखें।

बंगार की सख्त सलाह:

“No OC? No keys.” — यानी OC नहीं तो चाबी नहीं!


तो फिर बैंक यह सब क्यों नहीं बताते?

सीधा जवाब है — टारगेट और कमीशन।

बैंकों के कर्मचारियों पर हर महीने बिक्री का दबाव होता है —
जितना ज़्यादा लोन, बीमा और प्रोडक्ट बेचेंगे, उतना ज़्यादा इंसेंटिव मिलेगा।

इसलिए वे कभी-कभी सच्चाई “छिपा” लेते हैं। वे सीधे झूठ नहीं बोलते, पर पूरा सच भी नहीं बताते।

आम बहाने जो आप सुनेंगे:

  • “सबको ये चार्ज देना पड़ता है, सर।”

  • “पॉलिसी ज़रूरी है, नहीं तो फाइल अटकेगी।”

  • “अभी ले लीजिए, बाद में रिफंड हो जाएगा।”

👉 याद रखें:
आप ग्राहक हैं, आपके अधिकार हैं।
RBI की Fair Practices Code के तहत, बैंक को सभी चार्ज, नियम और शर्तें स्पष्ट रूप से लिखित में बतानी होती हैं।

अगर बैंक या RM आपको गुमराह करे, तो आप शिकायत कर सकते हैं —

  1. बैंक के ग्रेविएंस ऑफिसर को, या

  2. RBI Ombudsman को।


अतिरिक्त समझदारी भरी टिप्स

इन 6 सच्चाइयों के अलावा, कुछ और छोटी लेकिन ज़रूरी बातें याद रखें:

  1. सिर्फ ब्याज दर नहीं, पूरा “इफेक्टिव रेट” देखें।

    • डेली रिड्यूसिंग या मंथली रिड्यूसिंग बैलेंस में फर्क पड़ता है।

  2. ज़रूरत से ज़्यादा लोन मत लें।

    • बैंक जितना ऑफर करे, उतना लेना ज़रूरी नहीं।

    • EMI ऐसा रखें जिसे आप आसानी से चुका सकें।

  3. क्रेडिट स्कोर (CIBIL Score) 750+ रखें।

    • अच्छा स्कोर ब्याज दर 0.5% तक घटा सकता है — यानी लाखों की बचत।

  4. हर 2–3 साल में लोन की समीक्षा करें।

    • अगर किसी और बैंक में ब्याज दर कम है, तो रीफाइनेंस करें।

  5. प्री-पेमेंट (Prepayment) करें।

    • हर साल एक एक्स्ट्रा EMI देने से लोन की अवधि सालों घट सकती है।


निष्कर्ष: अपनी वित्तीय सुरक्षा के लिए खुद चौकन्ने रहें

घर खरीदना हर भारतीय का सपना होता है। लेकिन सपना तभी साकार होता है जब आप वित्तीय रूप से समझदारी दिखाएँ।

बैंक, बिल्डर और एजेंट अपना काम करेंगे — लेकिन आपका हित केवल आप ही देख सकते हैं।

सुजित बंगार की ये 6 “कड़वी सच्चाइयाँ” यही याद दिलाती हैं कि

“बैंक आपकी मदद करने नहीं, बिज़नेस करने आते हैं।”

इसलिए हमेशा पूछिए, समझिए और सब कुछ लिखित में लीजिए।

आपका एक सवाल या एक दस्तावेज़ चेक करना — आपको लाखों रुपये और सालों की परेशानी से बचा सकता है।

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