फ्लिपकार्ट बिग बिलियन डेज और अमेज़न ग्रेट इंडियन फेस्टिवल सेल्स: कैसे "नो-कॉस्ट EMI" आपको ज्यादा खर्च करवाती है
भारत में हर साल होने वाले त्यौहार न सिर्फ खुशियों का मौसम लाते हैं बल्कि बड़े-बड़े ऑनलाइन शॉपिंग सेल्स भी लेकर आते हैं। इन दिनों फ्लिपकार्ट बिग बिलियन डेज और अमेज़न ग्रेट इंडियन फेस्टिवल जैसी सेल्स का लोग बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। इस बार ये दोनों सेल्स 23 सितंबर से शुरू हो रही हैं, ठीक उस समय जब नई GST दरें लागू होंगी। इसका सीधा असर इलेक्ट्रॉनिक्स और रोज़मर्रा की कई चीज़ों की कीमतों पर पड़ेगा।
लेकिन इस पूरे उत्सव में एक शब्द सबसे ज्यादा सुनाई देगा—“नो-कॉस्ट EMI”। कंपनियाँ अपने प्रोडक्ट्स की बिक्री बढ़ाने के लिए इस सुविधा का खूब प्रचार करती हैं। पहली नज़र में लगता है कि यह एक बेहतरीन ऑफर है क्योंकि आप बिना किसी अतिरिक्त चार्ज या ब्याज के किसी भी महंगे प्रोडक्ट को किस्तों में खरीद सकते हैं। लेकिन क्या यह सच में मुफ्त है? या इसके पीछे भी कोई छुपा खेल है? आइए विस्तार से समझते हैं।
"फ्री" की हकीकत
कहावत है—“फ्री में कुछ नहीं मिलता।” जब भी कोई ऑफर या डील बहुत ज्यादा आकर्षक लगे, तो सबसे पहले आपको सोचना चाहिए कि इसमें असली फायदा किसका है।
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जैसे “बाय वन गेट वन फ्री” (BOGO) ऑफर में अक्सर प्रोडक्ट की कीमत बढ़ा दी जाती है। एक प्रोडक्ट अकेले खरीदने पर आप कम कीमत चुकाते हैं, लेकिन BOGO ऑफर में आपको लगेगा कि ज्यादा बचत हो रही है, जबकि असलियत उलट होती है।
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सोशल मीडिया ऐप्स जैसे इंस्टाग्राम और फेसबुक फ्री हैं, लेकिन वे आपकी निजी जानकारी और रुचियों से पैसा कमाते हैं।
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इसी तरह, नो-कॉस्ट EMI भी पूरी तरह मुफ्त नहीं होती। इसमें छुपे हुए चार्ज और शर्तें होती हैं, जो धीरे-धीरे आपकी जेब पर भारी पड़ जाते हैं।
नो-कॉस्ट EMI के छुपे हुए खर्चे
1. ओवरकंजम्प्शन (अनावश्यक खर्च)
जब हमें कोई चीज़ किस्तों में चुकाने का विकल्प मिलता है, तो अक्सर हम उसे तुरंत खरीद लेते हैं, भले ही उसकी जरूरत न हो।
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उदाहरण के लिए, कई लोग त्यौहार के समय सिर्फ इसलिए नया मोबाइल या टीवी खरीद लेते हैं क्योंकि वह नो-कॉस्ट EMI में मिल रहा है।
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बाद में पता चलता है कि वही प्रोडक्ट कुछ महीनों बाद और भी सस्ता हो गया, लेकिन तब तक आप EMI में फँस चुके होते हैं।
इस तरह EMI का विकल्प हमें ज्यादा खर्च करने की आदत डाल देता है, जिससे बचत कम होती जाती है।
2. टर्म्स एंड कंडीशन्स का जाल
कंपनियाँ EMI की असली शर्तें अक्सर छोटे अक्षरों में लिखती हैं, जिन्हें ज्यादातर ग्राहक पढ़ते ही नहीं।
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कुछ EMI केवल शुरुआती महीनों के लिए ब्याज-मुक्त होती हैं। बाद में आपको ब्याज देना पड़ता है।
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कई बैंक प्रोसेसिंग फीस वसूलते हैं, जो कभी-कभी प्रोडक्ट की कीमत का 2-3% तक हो सकता है।
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इन चार्जेज़ पर भी आपको GST देना होता है, जिससे असली लागत और बढ़ जाती है।
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने कई बार चेतावनी दी है कि इस तरह के छुपे चार्ज उपभोक्ताओं को गुमराह करते हैं, लेकिन फिर भी यह प्रैक्टिस जारी है।
3. क्रेडिट स्कोर पर असर
नो-कॉस्ट EMI आपके क्रेडिट कार्ड की क्रेडिट लिमिट से जुड़ी होती है।
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मान लीजिए आपके पास ₹1,00,000 की क्रेडिट लिमिट है और आपने ₹40,000 का टीवी EMI पर खरीदा। तो आपकी उपलब्ध लिमिट घटकर ₹60,000 हो जाएगी।
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जैसे-जैसे आप हर महीने EMI चुकाते हैं, लिमिट धीरे-धीरे वापस बढ़ती है।
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लेकिन शुरुआती महीनों में आपका क्रेडिट यूटिलाइजेशन रेशियो बढ़ जाता है, जिससे क्रेडिट स्कोर पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
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अगर आप EMI समय पर नहीं चुका पाए, तो लेट फीस और ब्याज दोनों लगते हैं। यह आपके क्रेडिट रिपोर्ट को खराब कर देता है।
4. कैशबैक और रिवॉर्ड का नुकसान
अगर आप कोई प्रोडक्ट एकमुश्त खरीदते हैं, तो बैंक आपको कैशबैक, रिवॉर्ड पॉइंट्स या डिस्काउंट देते हैं। लेकिन EMI में यह सुविधा नहीं मिलती।
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यानी EMI लेने पर आप इन एक्स्ट्रा बेनिफिट्स से वंचित रह जाते हैं।
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लंबे समय में यह आपके लिए वित्तीय नुकसान का कारण बन सकता है।
5. RBI का नियम और EMI का सच
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के नियमों के मुताबिक कोई भी लोन बिना ब्याज के नहीं हो सकता। EMI असल में एक तरह का लोन ही है।
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"नो-कॉस्ट" EMI में ब्याज होता है, लेकिन उसे सीधे ग्राहक से नहीं लिया जाता।
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मैन्युफैक्चरर या सेलर प्रोडक्ट की कीमत बढ़ाकर उस ब्याज को एडजस्ट कर देते हैं।
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यानी आपको पता भी नहीं चलता, और आप प्रोडक्ट के लिए ज्यादा पैसे चुका देते हैं।
एक उदाहरण से समझिए
मान लीजिए आपने एक लैपटॉप खरीदा—
अगर आप सीधे भुगतान करते हैं:
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बेस प्राइस (GST से पहले): ₹80,000
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GST @18%: ₹14,400
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कुल कीमत: ₹94,400
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डायरेक्ट पेमेंट डिस्काउंट: ₹10,000
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फाइनल प्राइस: ₹84,400
अगर आप नो-कॉस्ट EMI लेते हैं:
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बेस प्राइस (GST से पहले): ₹80,000
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GST @18%: ₹14,400
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कुल कीमत: ₹94,400
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EMI पर डिस्काउंट: नहीं
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प्रोसेसिंग फीस: ₹2,000
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प्रोसेसिंग फीस पर GST (18%): ₹360
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फाइनल प्राइस: ₹96,760
यानी EMI के नाम पर आप करीब ₹12,000 ज्यादा चुका देते हैं।
फायदे भी हैं, लेकिन…
यह कहना गलत होगा कि नो-कॉस्ट EMI पूरी तरह बेकार है। कई बार इसके फायदे भी हैं:
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अगर आपके पास एकमुश्त पैसे नहीं हैं, तो EMI सुविधा आपके लिए मददगार है।
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महंगे प्रोडक्ट (जैसे स्मार्टफोन, टीवी, लैपटॉप) को छोटे-छोटे हिस्सों में चुकाना आसान हो जाता है।
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कुछ बैंकों और क्रेडिट कार्ड्स (जैसे Amazon Pay ICICI कार्ड) पर इंस्टेंट डिस्काउंट भी मिलते हैं, जो EMI को वाकई किफायती बना सकते हैं।
लेकिन समस्या तब होती है जब ग्राहक बिना सोचे-समझे EMI का विकल्प चुन लेते हैं और छुपे हुए खर्चों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
समझदारी से कैसे खरीदें?
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जरूरत बनाम चाहत – सोचें कि प्रोडक्ट वाकई जरूरत का है या सिर्फ चाहत का।
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टर्म्स एंड कंडीशन्स पढ़ें – EMI से जुड़ी हर शर्त ध्यान से समझें।
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प्रोसेसिंग फीस चेक करें – अगर फीस ज्यादा है, तो EMI का फायदा खत्म हो जाता है।
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क्रेडिट स्कोर का ध्यान रखें – EMI समय पर चुकाएं ताकि आपका स्कोर खराब न हो।
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डायरेक्ट पेमेंट डिस्काउंट देखें – अक्सर एकमुश्त भुगतान में ज्यादा बचत होती है।
निष्कर्ष
त्यौहारों के मौसम में अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियाँ “नो-कॉस्ट EMI” को एक बड़े आकर्षण के रूप में पेश करती हैं। पहली नज़र में यह ऑफर बेहद लुभावना लगता है, लेकिन इसके पीछे कई छुपे हुए खर्च और शर्तें होती हैं।
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EMI आपको ज्यादा खर्च करने पर मजबूर करती है।
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कैशबैक और डिस्काउंट से वंचित कर देती है।
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आपके क्रेडिट स्कोर पर असर डाल सकती है।
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और सबसे अहम—आपको यह विश्वास दिलाती है कि आपने अच्छी डील ली है, जबकि असल में आप ज्यादा पैसा चुका रहे होते हैं।
इसलिए अगली बार जब आप “नो-कॉस्ट EMI” का बोर्ड देखें, तो एक बार ठहरकर सोचें—क्या वाकई यह आपके लिए फायदेमंद है या सिर्फ कंपनियों की चालाकी का हिस्सा?
समझदारी इसी में है कि ज़रूरत के मुताबिक, सही ऑफर देखकर और लंबी अवधि के फायदे-नुकसान सोचकर ही कोई बड़ा फैसला लिया जाए।
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