Tenancy Rules: एक साल में कितना बढ़ा सकता है किराया? जानिए मकान मालिक और किराएदार से जुड़े जरूरी नियम
आज के समय में शहरों में रहना और वहां किराए पर मकान लेना आम बात है। नौकरी, पढ़ाई या व्यवसाय के सिलसिले में लाखों लोग अपना घर छोड़कर दूसरे शहरों में रहते हैं। ऐसे में किराए पर रहना उनकी मजबूरी बन जाता है। लेकिन महंगाई के इस दौर में हर महीने किराया चुकाना खुद एक चुनौती बन चुका है। इस पर अगर मकान मालिक मनमर्जी से किराया बढ़ा दें, तो किराएदार की मुश्किलें और भी बढ़ जाती हैं।
बड़ी संख्या में लोग यह नहीं जानते कि कानून मकान मालिक को कितनी बार और कितने प्रतिशत किराया बढ़ाने की इजाजत देता है। आज हम आपको बताएंगे कि केंद्र और विभिन्न राज्यों में किराया बढ़ाने को लेकर क्या-क्या नियम हैं, ताकि आप अपने अधिकार जान सकें और मकान मालिक की मनमानी से बच सकें।
1. किराएदारी कानून की जरूरत क्यों है?
भारत में बड़ी संख्या में लोग किराए के मकानों में रहते हैं। यदि कोई नियम न हों, तो मकान मालिक किराएदार पर दबाव डालकर मनमाने तरीके से किराया बढ़ा सकते हैं। इसलिए सरकार ने किराएदारी कानून (Tenancy Laws) बनाए हैं, जो मकान मालिक और किराएदार दोनों के अधिकारों और कर्तव्यों को संतुलित करते हैं।
2. मॉडल किरायेदारी कानून क्या है?
भारत सरकार ने वर्ष 2021 में एक मॉडल टेनेंसी एक्ट (Model Tenancy Act) प्रस्तावित किया था। इसका उद्देश्य था पूरे देश में एक समान किरायेदारी कानून लागू करना। हालांकि इसे लागू करना राज्यों की जिम्मेदारी है। इसलिए अलग-अलग राज्यों ने इसे अपने तरीके से अपनाया है या पुराने कानूनों में बदलाव किए हैं।
3. दिल्ली में किराया बढ़ाने के नियम (Delhi Rent Rules)
दिल्ली में दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट 2009 लागू है। इसके अनुसार:
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यदि कोई किराएदार लगातार मकान में रह रहा है, तो मकान मालिक साल में अधिकतम 7 प्रतिशत तक किराया बढ़ा सकता है।
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यदि किराएदार मकान खाली कर देता है, तो मकान मालिक को नए किराएदार से मनचाहा किराया लेने का अधिकार है।
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छात्रावास, पेइंग गेस्ट और बोर्डिंग हाउस जैसी सुविधाओं में साल में सिर्फ एक बार किराया बढ़ाया जा सकता है।
यह कानून किराएदारों को अनावश्यक बोझ से बचाने के लिए है, ताकि कोई मकान मालिक हर 2-3 महीने में किराया न बढ़ा दे।
4. उत्तर प्रदेश में किराया बढ़ाने के नियम (UP Rent Control Rules)
उत्तर प्रदेश में नगरीय किराएदारी विनियमन अध्यादेश-2021 लागू है। इसके अनुसार:
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आवासीय भवन (Residential Property) के लिए मकान मालिक प्रत्येक वर्ष अधिकतम 5 प्रतिशत किराया बढ़ा सकता है।
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गैर आवासीय भवन (जैसे दुकान, ऑफिस आदि) के लिए यह सीमा 7 प्रतिशत है।
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यह बढ़ौतरी चक्रवृद्धि आधार पर की जाती है, यानी पिछले किराए पर वृद्धि की जाती है।
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यदि कोई किराएदार दो महीने तक किराया नहीं देता, तो मकान मालिक कानूनी तौर पर उसे मकान खाली करने के लिए कह सकता है।
5. महाराष्ट्र में किराए के नियम (Maharashtra Rent Rules)
महाराष्ट्र में महाराष्ट्र रेंट कंट्रोल एक्ट 2000 लागू है। इसके अनुसार:
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मकान मालिक साल में अधिकतम 4 प्रतिशत तक किराया बढ़ा सकता है।
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यदि मकान की मरम्मत या सुधार का कार्य किया गया हो, तो मकान मालिक किराया बढ़ा सकता है, लेकिन यह बढ़ौतरी निर्माण लागत के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।
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यदि संपत्ति पर टैक्स बढ़ता है, तो मकान मालिक वह राशि किराए में जोड़ सकता है, लेकिन यह सिर्फ उसी राशि तक सीमित रहेगा।
6. किराया बढ़ाने की प्रक्रिया: कैसे होनी चाहिए?
किराया बढ़ाने के लिए केवल प्रतिशत जानना ही काफी नहीं है, बल्कि मकान मालिक को एक सुनियोजित और कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होता है:
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किराया बढ़ाने से कम से कम 3 महीने पहले किराएदार को लिखित सूचना देना जरूरी है।
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सूचना में नए किराए की दर और प्रभावी तिथि साफ-साफ लिखी होनी चाहिए।
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यदि किराएदार को यह वृद्धि मंजूर नहीं है, तो वह तय समय में आपत्ति दर्ज करा सकता है।
7. अन्य राज्यों के किराएदारी कानून (Other States Tenancy Rules)
हर राज्य का अपना किराया कानून है। हालांकि अधिकतर राज्यों में मॉडल टेनेंसी एक्ट से प्रेरित नियम ही बनाए गए हैं।
राजस्थान:
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किराया वृद्धि की सीमा आमतौर पर 5-7 प्रतिशत होती है।
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मकान मालिक को किराया बढ़ाने से पहले लिखित सूचना देनी होती है।
बिहार:
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किराया अनुबंध के आधार पर बढ़ाया जा सकता है।
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यदि अनुबंध नहीं है, तो किराया वृद्धि को लेकर विवाद अधिक होते हैं।
कर्नाटक:
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मकान मालिक सालाना 5-10 प्रतिशत तक किराया बढ़ा सकते हैं, परंतु इसका आधार लिखित अनुबंध ही होता है।
8. लिखित अनुबंध क्यों जरूरी है? (Importance of Rent Agreement)
कई बार किराया विवाद का मुख्य कारण यह होता है कि किराएदार और मकान मालिक के बीच कोई लिखित समझौता नहीं होता। इसलिए:
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लिखित रेंट एग्रीमेंट होना अनिवार्य है, जिसमें किराए की राशि, बढ़ौतरी की शर्तें, अवधि और अन्य नियम स्पष्ट हों।
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अनुबंध में यह भी लिखा होना चाहिए कि हर साल कितनी प्रतिशत वृद्धि होगी।
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इससे भविष्य में किसी विवाद की स्थिति में न्याय मिलना आसान हो जाता है।
9. यदि मकान मालिक मनमानी करे तो क्या करें?
यदि कोई मकान मालिक नियमों को नजरअंदाज कर मनमाने तरीके से किराया बढ़ाता है, तो किराएदार को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:
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लिखित आपत्ति दर्ज कराएं और मकान मालिक से बातचीत करें।
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यदि समाधान न मिले, तो स्थानीय किराया नियंत्रण अधिकारी (Rent Controller) से शिकायत करें।
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मकान मालिक किराएदार को धमकाता है या जबरन निकाले, तो पुलिस में शिकायत दर्ज की जा सकती है।
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किराएदार अपने किरायेदारी अधिकारों के लिए कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकता है।
10. किराएदारों के लिए जरूरी सुझाव:
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किराया चुकाने की रसीद या बैंक स्टेटमेंट रखें, ताकि भुगतान का सबूत हो।
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हर साल किराया बढ़े तो उसका लिखित नोटिस मांगें।
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रेंट एग्रीमेंट को रजिस्टर्ड कराना सबसे बेहतर होता है।
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यदि मकान मालिक अनुबंध के विरुद्ध कार्य करता है, तो कानूनी सलाह लें।
निष्कर्ष:
किराए पर मकान लेना और उसमें रहना जितना आम है, उतना ही जरूरी है इसके कानूनी पहलुओं को समझना। किराएदारी कानून न सिर्फ मकान मालिक को अधिकार देता है, बल्कि किराएदार की सुरक्षा के लिए भी बना है।
अगर आप किराए पर रहते हैं, तो जानिए कि आपका मकान मालिक हर साल अधिकतम कितना किराया बढ़ा सकता है, और क्या यह कानूनी है या नहीं। मकान मालिक और किराएदार, दोनों का यह कर्तव्य है कि वे किराए के नियमों का पालन करें और आपसी सहमति से किराए की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएं।
याद रखें:
"जानकारी ही सबसे बड़ी सुरक्षा है।"
इसलिए अगर आप किराए पर रह रहे हैं, तो अपने अधिकार और कानून जरूर जानें। इससे आप आर्थिक और मानसिक दोनों परेशानियों से बच सकते हैं।
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