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House Renting Guide: Important Things to Check Before Finalizing a Rental Home

मकान मालिक एक साल में कितना किराया बढ़ा सकता है? किरायेदार जान लें अपने अधिकार

भारत में लाखों लोग किराए के मकान में रहते हैं, और मकान मालिक अपने घरों को किराए पर देते हैं। कई बार किराए को लेकर विवाद खड़ा हो जाता है, खासकर जब मकान मालिक किराया बढ़ाने की कोशिश करता है और किरायेदार इसका विरोध करता है। यह जानना जरूरी है कि कानून में किराए की वृद्धि से जुड़े नियम पहले से तय किए गए हैं।

अगर आप किसी भी शहर में किराए पर रहते हैं या कोई प्रॉपर्टी किराए पर देने की योजना बना रहे हैं, तो यह समझना आवश्यक है कि मकान मालिक कितनी बार और कितने प्रतिशत तक किराया बढ़ा सकता है। यह लेख आपको किराए से जुड़े सभी कानूनी पहलुओं की जानकारी देगा ताकि आप अपने अधिकारों को जानकर सही निर्णय ले सकें।

रेंट एग्रीमेंट क्या होता है?

रेंट एग्रीमेंट वह कानूनी दस्तावेज होता है जो किरायेदार और मकान मालिक के बीच किराए के मकान से जुड़े नियम और शर्तों को स्पष्ट करता है। यह दस्तावेज किराए पर रहने की पूरी प्रक्रिया को कानूनी रूप देता है।

रेंट एग्रीमेंट के मुख्य बिंदु:

  1. समय अवधि: आमतौर पर यह 11 महीने का होता है, लेकिन इसे 5 साल या उससे अधिक के लिए भी बनवाया जा सकता है।
  2. किराया वृद्धि का नियम: इसमें तय होता है कि सालाना कितनी प्रतिशत वृद्धि की जा सकती है।
  3. सुरक्षा राशि (Security Deposit): मकान मालिक किराएदार से एक निश्चित राशि अग्रिम रूप में लेता है, जो बाद में वापस की जाती है।
  4. मकान के रखरखाव की शर्तें: कौन सी मरम्मत मकान मालिक करेगा और कौन सी किराएदार को करनी होगी।
  5. समाप्ति की शर्तें: रेंट एग्रीमेंट खत्म करने के लिए कितने दिन पहले सूचना देनी होगी।

रेंट एग्रीमेंट को सही तरीके से बनवाना और इसे रजिस्टर्ड कराना जरूरी होता है ताकि भविष्य में किसी विवाद से बचा जा सके।

रेंट एग्रीमेंट की समय सीमा और सुरक्षा

11 महीने का एग्रीमेंट क्यों बनाया जाता है?

अधिकतर मामलों में रेंट एग्रीमेंट 11 महीने के लिए बनता है, क्योंकि:

  • 11 महीने के भीतर किए गए रेंट एग्रीमेंट को रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1908 के तहत रजिस्टर कराना जरूरी नहीं होता, जिससे प्रक्रिया आसान हो जाती है।
  • इससे मकान मालिक को यह सुविधा मिलती है कि वह हर 11 महीने बाद नया एग्रीमेंट बना सकता है और किराए में वृद्धि कर सकता है।
  • यह कम अवधि का एग्रीमेंट होने के कारण मकान मालिक को कानूनी सुरक्षा मिलती है कि किरायेदार लंबे समय तक मकान पर अधिकार न जता सके।

अगर कोई व्यक्ति लंबे समय तक एक ही मकान में रहना चाहता है, तो वह मकान मालिक से 5 साल या उससे अधिक की अवधि का रेंट एग्रीमेंट बना सकता है। लेकिन, 12 महीने या उससे अधिक का एग्रीमेंट कराने के लिए इसे सब-रजिस्ट्रार ऑफिस में रजिस्टर्ड कराना अनिवार्य होता है।

किराए में वृद्धि के नियम

कितना किराया बढ़ाया जा सकता है?

मकान मालिक सालाना कितनी प्रतिशत वृद्धि कर सकता है, यह राज्य के कानूनों पर निर्भर करता है। लेकिन आमतौर पर निम्नलिखित नियम लागू होते हैं:

  • अधिकतर राज्यों में सालाना 5% से 10% तक किराया बढ़ाने की अनुमति होती है।
  • महाराष्ट्र में रेंट कंट्रोल एक्ट 1999 के तहत, मकान मालिक अधिकतम 4% किराया प्रति वर्ष बढ़ा सकता है।
  • अगर मकान मालिक किराएदार को अतिरिक्त सुविधाएं (जैसे फर्निश्ड मकान, बिजली बैकअप, पार्किंग, आदि) देता है, तो वह अधिकतम 25% तक किराया बढ़ा सकता है।
  • दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में, स्थानीय कानूनों के तहत मकान मालिक को किराया बढ़ाने के लिए किरायेदार को पहले से सूचना देनी होती है।

किराया बढ़ाने के लिए मकान मालिक को क्या करना होगा?

  1. रेंट एग्रीमेंट के नियमों का पालन करना: अगर एग्रीमेंट में पहले से तय है कि किराया हर साल 5% बढ़ेगा, तो मकान मालिक बिना किसी विवाद के यह बढ़ोतरी कर सकता है।
  2. लिखित सूचना देना: कई राज्यों में, किराया बढ़ाने से पहले मकान मालिक को कम से कम 30 दिन पहले लिखित नोटिस देना जरूरी होता है।
  3. किरायेदार की सहमति: अगर किराएदार सहमत नहीं होता, तो मामला विवाद का रूप ले सकता है और कानूनी कार्रवाई की जरूरत पड़ सकती है।

मकान मालिक और किरायेदार के अधिकार और कर्तव्य

मकान मालिक के अधिकार

  1. समय पर किराया प्राप्त करना: मकान मालिक का अधिकार है कि उसे तय समय पर किराया मिले।
  2. संपत्ति का रखरखाव: अगर किरायेदार मकान को नुकसान पहुंचाता है, तो मकान मालिक उसे कानूनी रूप से जिम्मेदार ठहरा सकता है।
  3. किराए में वृद्धि: उचित समय पर किराया बढ़ाने का अधिकार होता है, लेकिन यह एग्रीमेंट और कानून के अनुसार होना चाहिए।
  4. किराएदार को नोटिस देना: अगर किरायेदार किराए का भुगतान नहीं करता या संपत्ति का दुरुपयोग करता है, तो मकान मालिक उसे कानूनी रूप से नोटिस देकर बेदखल कर सकता है।

किरायेदार के अधिकार

  1. बिना पूर्व सूचना किराया नहीं बढ़ाया जा सकता: मकान मालिक मनमाने ढंग से किराया नहीं बढ़ा सकता।
  2. मूलभूत सुविधाएं मिलनी चाहिए: पानी, बिजली और अन्य बुनियादी सुविधाएं किरायेदार को मिलनी चाहिए।
  3. बिना कारण जबरदस्ती नहीं निकाला जा सकता: मकान मालिक बिना किसी वैध कारण के किरायेदार को घर खाली करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता।
  4. सुरक्षा राशि वापस लेने का अधिकार: जब किरायेदार मकान खाली करता है, तो उसे अपनी जमा की गई सुरक्षा राशि वापस मिलनी चाहिए।

किराए से जुड़े कानूनी विवादों को कैसे सुलझाएं?

अगर मकान मालिक और किरायेदार के बीच विवाद हो जाता है, तो इसे निम्नलिखित तरीकों से सुलझाया जा सकता है:

  • बातचीत के माध्यम से समाधान: सबसे पहले दोनों पक्षों को आपसी सहमति से समाधान निकालने की कोशिश करनी चाहिए।
  • कानूनी नोटिस भेजना: अगर बातचीत से हल नहीं निकलता, तो दोनों पक्ष वकील के माध्यम से एक-दूसरे को कानूनी नोटिस भेज सकते हैं।
  • रेंट कंट्रोल अथॉरिटी में शिकायत: प्रत्येक राज्य में एक रेंट कंट्रोल अथॉरिटी होती है, जहां किरायेदार और मकान मालिक अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
  • न्यायालय का सहारा: अगर कोई समाधान नहीं निकलता, तो मामला कोर्ट में ले जाया जा सकता है।

निष्कर्ष

किराए के मकान में रहने वाले लोगों के लिए यह समझना जरूरी है कि उनका कानूनी अधिकार क्या है और मकान मालिक कितनी बार और कितने प्रतिशत तक किराया बढ़ा सकता है। सही रेंट एग्रीमेंट और कानूनी जानकारी होने से किसी भी तरह के विवाद से बचा जा सकता है।

अगर आप मकान मालिक हैं, तो यह ध्यान रखें कि किसी भी किरायेदार के साथ कानूनी रूप से सही एग्रीमेंट बनाना आवश्यक है। वहीं, किरायेदार को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किराए से जुड़े सभी नियम स्पष्ट रूप से तय हों, ताकि भविष्य में किसी समस्या का सामना न करना पड़े।

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